नई दिल्ली: प्रशांत महासागर के गहरे पानी के नीचे एक पूरी दुनिया छिपी थी, जिसका खुलासा अब वैज्ञानिकों ने किया है. एक महासागरीय अभियान के दौरान कुक आइलैंड्स के पास समुद्र तल के नीचे कई अंडरवाटर ज्वालामुखियों की खोज की गई. हैरान करने वाली बात यह है कि इनमें से कुछ ज्वालामुखी अभी भी सक्रिय हो सकते हैं. ये ज्वालामुखी हवाई से लगभग 4700 किलोमीटर दक्षिण में स्थित हैं. वैज्ञानिकों का मानना है कि अगर ये सक्रिय हुए तो गहरे समुद्र में एक अनोखा इकोसिस्टम बन सकता है. हालांकि, अभी तक किसी स्पष्ट ज्वालामुखीय गतिविधि के संकेत नहीं मिले हैं. सीबेड मिनरल्स अथॉरिटी (SBMA) के विशेषज्ञों का कहना है कि अब तक इस इलाके की बारीकी से जांच नहीं हुई थी. जब नए मैप का पूरा एनालिसिस होगा, तब भविष्य में वैज्ञानिक आसानी से इन इलाकों की जांच कर सकेंगे.
कैसे बने ये ज्वालामुखी?
कुक आइलैंड्स 15 द्वीपों का एक समूह है, जो फ्रेंच पोलिनेशिया और अमेरिकन समोआ के बीच स्थित है. ये द्वीप लाखों साल पहले तब बने जब पैसिफिक प्लेट धरती के मेंटल में मौजूद एक मैग्मा हॉटस्पॉट के ऊपर से गुज़री. ठीक उसी तरह जैसे हवाई आइलैंड्स बने थे.
हॉटस्पॉट एक ऐसी जगह होती है जहां गर्म मैग्मा मेंटल से ऊपर उठकर क्रस्ट तक पहुंचती है और ज्वालामुखी गतिविधियां शुरू होती हैं. जब बार-बार मैग्मा फूटकर पानी में ठंडा होता है, तो धीरे-धीरे समुद्र के नीचे ज्वालामुखी पहाड़ बनते जाते हैं. अगर ये प्रक्रिया लंबे समय तक चलती रहे तो ये ज्वालामुखी पानी की सतह के ऊपर निकलकर एक नया द्वीप भी बना सकते हैं.
कुक आइलैंड्स में छिपे ज्वालामुखी
कुक आइलैंड्स के ज्यादातर ज्वालामुखी कई मिलियन साल पुराने हैं. लेकिन रारोटोंगा और आइटुटाकी द्वीपों की चट्टानों में नए और पुराने ज्वालामुखीय पत्थरों का मिश्रण पाया गया है. इसका मतलब है कि ये द्वीप हाल ही में बने हैं. वैज्ञानिकों ने पता लगाया कि रारोटोंगा का सबसे युवा ज्वालामुखीय पत्थर सिर्फ 1.2 मिलियन साल पुराना है.
2024 में मिला 6.7 लाख साल पुराना संकेत
हाल ही में वैज्ञानिकों ने कुक आइलैंड्स के समुद्र तल पर एक छिपे ज्वालामुखी की चट्टानों का अध्ययन किया. यह इलाका रारोटोंगा से 60 किलोमीटर दक्षिण-पूर्व में स्थित है और इस ज्वालामुखी का नाम “तामा” रखा गया है. इन चट्टानों की उम्र सिर्फ 670,000 साल निकली, जो कुक आइलैंड्स में अब तक की सबसे युवा ज्वालामुखीय चट्टानें हैं.
इसी खोज के आधार पर वैज्ञानिकों ने अनुमान लगाया कि रारोटोंगा से तामा के दक्षिण-पूर्व की ओर कई अन्य अंडरवाटर ज्वालामुखी हो सकते हैं.
ARTEX 2025 मिशन – महासागर की गहराइयों में नई खोज
इन रहस्यमयी ज्वालामुखियों का पता लगाने के लिए ARTEX 2025 अभियान शुरू किया गया. इसका मकसद रारोटोंगा के आसपास समुद्र तल का विस्तार से नक्शा बनाना था. इस अभियान के दौरान वैज्ञानिकों ने समुद्र तल पर एक किलोमीटर ऊंचे ज्वालामुखी “पेपे” की खोज की. हालांकि, अभी तक वैज्ञानिक पूरी तरह कन्फर्म नहीं कर पाए हैं कि ये ज्वालामुखी सक्रिय हैं या नहीं. इसके लिए उन्हें सीधे जाकर चट्टानों के सैंपल लेने होंगे.
वैज्ञानिकों की टीम अब इस इलाके में फिर से जाना चाहती है. उनका मकसद है कि ज्वालामुखीय चट्टानों के नमूने इकट्ठे किए जाएं और उनकी सटीक उम्र पता की जाए. इसके अलावा, इस खोज से यह भी पता चलेगा कि क्या इन ज्वालामुखियों की गर्मी के कारण समुद्र में कोई अनोखा जीवन पनप रहा है.